Hiljatra Festival of Pithoragarh will Soon be Included in the UNESCO Heritage List: एक खबर निकलकर आई है जिसमे यूनेस्को की धरोहर में अब हिलजात्रा को शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है। अल्मोड़ा संस्कृति विभाग की ओर से जीबी पंत राजकीय संग्रहालय ने यूनेस्को की धरोहर में हिलजात्रा को शामिल कराने के लिए काम शुरू कर दिया है। जिसके लिए सबसे पहले हिलजात्रा के इतिहास को पूरी तरह से जानना होगा। और फिर उस पर एक डॉक्यूमेंट्री बनानी होगी।
क्या है यूनेस्को
यूनेस्को संयुक्त राष्ट्र का एक ऐसा संगठन है जिसमे दुनिया भर के देश शामिल है और इसका कार्य शिक्षा, प्रकृति, समाज विज्ञान और संस्कृति जैसे माध्यम से अंतर्राष्ट्रीय शांति को दुनिया भर में फैलाना है। इस संस्था का गठन 16 नवम्बर 1945 को किया गया था। इसका उद्देशय शिक्षा व संस्कृति के अंतर्राष्ट्रीय सहयोग से शांति और सुरक्षा को स्थापित करना है।
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यूनेस्को में शामिल होगा सोरघाटी का यह पर्व | Hiljatra Festival of Pithoragarh will Soon be Included in the UNESCO Heritage List.
उत्तराखंड में पहाड़ों के लोकपर्व संस्कृति और धार्मिक आस्था का प्रतिक होते है। लेकिन कुछ त्यौहार ऐसे भी होते है जो अपने आप में ही अलग महत्व रखते है। इसी तरह सोरघाटी (पिथौरागढ़) में एक ऐसा पर्व मनाया जाता है। जो विशेष महत्व रखता है। जिसे ‘हिलजात्रा’ के नाम से जाना जाता है। जो और कही नहीं देखने को मिलता। इस त्यौहार को अलग बनाने का कार्य उसमें प्रयुक्त होने वाले मुखौटों का इतिहास है।
इस पर्व में प्रयुक्त मुखौटों का इतिहास लगभग 500 साल पुराना है। यह मुखौटे चार महर भाईयों को नेपाल के राजा ने दिये थे। जो की कुमौड़ गांव में रहते थे। और यह मुखौटे उन्हें उनकी वीरता के प्रतीक के रूप में दिये गए थे। जिसके बाद से इन मुखौटों को पिथौरागढ़ में उपयोग कर यहां हिलजात्रा नाम का यह त्यौहार मनाया जाने लगा। और तभी से इस त्यौहार को सोरघाटी पिथौरागढ़ में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है।
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इतिहास खंगाल कर बनाई जाएगी डॉक्यूमेंट्री
पिथौरागढ़ के इस अनोखे पर्व हिलजात्रा को यूनेस्को की धरोहर में शामिल करे जाने को लेकर काम शुरू कर दिया गया। जिसे अल्मोड़ा संस्कृति विभाग की तरफ से जीबी पंत राजकीय संग्रहालय ने शुरू किया है। जिसमे पहले पिथौरागढ़ के सभी हिस्सों में मनाए जाने वाले हिलजात्रा पर्व के इतिहास के बारे में जाना जाएगा। फिर इस पर्व के पीछे धार्मिक, पारंपरिक, सांस्कृतिक, सामाजिक पहलुओं को शामिल कर एक डॉक्यूमेंट्री तैयार करी जाएगी।
डॉक्यूमेंट्री तैयार होने के बाद इन अनोखी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत को यूनेस्को की धरोहर में शामिल कराने के लिए एक प्रस्ताव तैयार होगा। जिसके बाद यह प्रस्ताव संगीत नाट्य एकेडमी दिल्ली भेजा जाएगा। जहां से यह प्रस्ताव संस्कृति मंत्रालय जाएगा और वहां प्रस्ताव का मूल्यांकन होगा। तब जाकर मंत्रालय स्तर पर यूनेस्को की धरोहर में शामिल करने के लिए जरुरी कार्रवाई की जाएगी।
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